अज्ञेय- रोज - कहानी की समीक्षा और सारांश
अज्ञेय- रोज कहानी की समीक्षा और सारांश हिंदी साहित्य, काव्यशास्त्र , RPSC , UPSC NET ऑनलाइन कोर्से उपलब्द है - डॉ. साहिल क्लासेज (DR.SAHIL CLASSES) - एप्प पर . आज ही कॉल करे 9214964437 , 9664256721 लेखक: अज्ञेय संस्करण: 9 प्रकाशक: भारती भंडार, इलाहाबाद प्रकाशन वर्ष: 1961 दोपहरिए में उस घर के सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो, उसके वातावरण में कुछ ऐसा अकथ्य, अस्पृश्य, किंतु फिर भी बोझिल और प्रकंपमय और घना-सा फैल रहा था...। मेरी आहट सुनते ही मालती बाहर निकली। मुझे देखकर, पहचानकर उसकी मुरझाई हुई मुख-मुद्रा तनिक-से मीठे विस्मय से