तुलसीदास (उत्तरकाण्ड) BHAG 7-9
श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस - सप्तम सोपान ( उत्तरकाण्ड ) 7. दोहा : ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार । सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार ॥ २५ ॥ जो (बौद्धिक) ज्ञान, वाणी और इंद्रियों से परे और अजन्मा है तथा माया, मन और गुणों के परे है, वही सच्चिदानन्दघन भगवान् श्रेष्ठ नरलीला करते हैं ॥ २५ ॥ चौपाई : प्रातकाल सरऊ करि मज्जन । बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन ॥ बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं । सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं ॥ १ ॥ प्रातःकाल सरयूजी में स्नान करके ब्राह्मणों और सज्जनों के साथ सभा में बैठते हैं । वशिष्ठजी वेद और पुराणों की कथाएँ वर्णन करते हैं और श्री रामजी सुनते हैं, यद्यपि वे सब जानते हैं ॥ १ ॥ अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं । देखि सकल जननीं सुख भरहीं ॥ भरत सत्रुहन दोनउ भाई । सहित पवनसुत उपबन जाई ॥ २ ॥ वे भाइयों को साथ लेकर भोजन करते हैं । उन्हें देखकर सभी माताएँ आनंद से भर जाती हैं । भरतजी और शत्रुघ्नजी दोनों भाई हनुमान् जी सहित उपवनों में जाकर, ॥ २ ॥ बूझहिं बैठि राम गुन गाहा । कह हनुमान सुमति अवगाहा ॥ सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं