Posts

Showing posts from October 8, 2023

तुलसीदास (उत्तरकाण्ड) BHAG 7-9

Image
    श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस - सप्तम सोपान ( उत्तरकाण्ड )     7. दोहा : ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार । सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार ॥ २५ ॥ जो (बौद्धिक) ज्ञान, वाणी और इंद्रियों से परे और अजन्मा है तथा माया, मन और गुणों के परे है, वही सच्चिदानन्दघन भगवान् श्रेष्ठ नरलीला करते हैं ॥ २५ ॥ चौपाई : प्रातकाल सरऊ करि मज्जन । बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन ॥ बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं । सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं ॥ १ ॥ प्रातःकाल सरयूजी में स्नान करके ब्राह्मणों और सज्जनों के साथ सभा में बैठते हैं । वशिष्ठजी वेद और पुराणों की कथाएँ वर्णन करते हैं और श्री रामजी सुनते हैं, यद्यपि वे सब जानते हैं ॥ १ ॥ अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं । देखि सकल जननीं सुख भरहीं ॥ भरत सत्रुहन दोनउ भाई । सहित पवनसुत उपबन जाई ॥ २ ॥ वे भाइयों को साथ लेकर भोजन करते हैं । उन्हें देखकर सभी माताएँ आनंद से भर जाती हैं । भरतजी और शत्रुघ्नजी दोनों भाई हनुमान् जी सहित उपवनों में जाकर, ॥ २ ॥ बूझहिं बैठि राम गुन गाहा । कह हनुमान सुमति अवगाहा ॥ सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं

तुलसीदास (उत्तरकाण्ड) BHAG 4--6

Image
श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस - सप्तम सोपान ( उत्तरकाण्ड )           4. चौपाई : अवधपुरी अति रुचिर बनाई । देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई ॥ राम कहा सेवकन्ह बुलाई । प्रथम सखन्ह अन्हवावहु जाई ॥ १ ॥ अवधपुरी बहुत ही सुंदर सजाई गई । देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की झड़ी लगा दी । श्री रामचंद्रजी ने सेवकों को बुलाकर कहा कि तुम लोग जाकर पहले मेरे सखाओं को स्नान कराओ ॥ १ ॥ सुनत बचन जहँ तहँ जन धाए । सुग्रीवादि तुरत अन्हवाए ॥ पुनि करुनानिधि भरतु हँकारे । निज कर राम जटा निरुआरे ॥ २ ॥ भगवान् के वचन सुनते ही सेवक जहाँ-तहाँ दौड़े और तुरंत ही उन्होंने सुग्रीवादि को स्नान कराया । फिर करुणानिधान श्री रामजी ने भरतजी को बुलाया और उनकी जटाओं को अपने हाथों से सुलझाया ॥ २ ॥ अन्हवाए प्रभु तीनिउ भाई । भगत बछल कृपाल रघुराई ॥ भरत भाग्य प्रभु कोमलताई । सेष कोटि सत सकहिं न गाई ॥ ३ ॥ तदनन्तर भक्त वत्सल कृपालु प्रभु श्री रघुनाथजी ने तीनों भाइयों को स्नान कराया । भरतजी का भाग्य और प्रभु की कोमलता का वर्णन अरबों शेषजी भी नहीं कर सकते ॥ ३ ॥ पुनि निज जटा राम बिबराए । गुर अनुसा

तुलसीदास (उत्तरकाण्ड) BHAG 1-3

Image
  श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस - सप्तम सोपान ( उत्तरकाण्ड )     श्लोक : केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम् । पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं । नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम् ॥ १ । मोर के कण्ठ की आभा के समान (हरिताभ) नीलवर्ण, देवताओं में श्रेष्ठ, ब्राह्मण (भृगुजी) के चरणकमल के चिह्न से सुशोभित, शोभा से पूर्ण, पीताम्बरधारी, कमल नेत्र, सदा परम प्रसन्न, हाथों में बाण और धनुष धारण किए हुए, वानर समूह से युक्त भाई लक्ष्मणजी से सेवित, स्तुति किए जाने योग्य, श्री जानकीजी के पति, रघुकुल श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्री रामचंद्रजी को मैं निरंतर नमस्कार करता हूँ ॥ १ ॥ कोसलेन्द्रपदकन्जमंजुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ । जानकीकरसरोजलालितौ चिन्तकस्य मनभृंगसंगिनौ ॥ २ ॥ कोसलपुरी के स्वामी श्री रामचंद्रजी के सुंदर और कोमल दोनों चरणकमल ब्रह्माजी और शिवजी द्वारा वन्दित हैं, श्री जानकीजी के करकमलों से दुलराए हुए हैं और चिन्तन करने वाले के मन रूपी भौंरे के नित्य संगी हैं अर्थात